Saturday, April 3, 2010


बाजरे का रोटला, टट्टी और गन्ने की ठूंठ
'अबे तेरा टट्टी मेरी टट्टी से मोटा क्यूँ है ?'
..
'अबे बोल ना'
'कल क्या खाया था ?'
'दाल पी थी'
'तूने?'
'बाजरे का रोटला'
'समझा?'
'नहीं'
'चूतिया साला'
'अबे गाली मत दे , मैं बोल रहा हूँ!'
'क्या गाली दी बे?'
'अच्छा ...'साला नहीं बोला तूने?'
'साले कौन सी गाली होती है बे?'
'होती है, मैं सीटू से पुछवा दूंगा'
'सीटू भी सिर्री है और तू भी सिर्री है '
...
"अच्छा"
....
सूखे लौंडे से रहा नहीं जा रहा था, वो जमीन पर उंगली से सांप बनाता था और फिर पानी डाल के उसको ख़तम कर देता था ..
"अबे बता ना ...तेरा टट्टी मेरी टट्टी से मोटा क्यूँ है ?"
काला लौंडा शुरुआत से ही कटे हुए गन्ने की एक बची हुई ठूंठ उखाड़ने की कोशिश कर रहा था,
ठूठ बाहर नहीं आ रही थी, वो जब भी ज्यादा जोर लगाता, टट्टी धक्के से आती थी
सूखे लौंडे से गन्ना नहीं उखाड़ता था इसलिए वो दूसरे काम में मगन था, वो दोनों टांगों पे उकडू बैठ के हगता था और उचक के ये देखता था की टट्टी ज़मीन पर गिरने से पहले कितनी लम्बी हो जाती है
'अबे देख..!'
'अबे साले जल्दी देख ना ..ए बे देख....'
'क्या ?'
'साली सांप के बराबर हो गयी थी'
'हुह ...मेरी एक दिन आधा-हाँथ लम्बी हो गयी थी'
'अबे मेरी और बड़ी हुई थी ..करिया सांप के बराबर'
कौन सा सांप'
'अबे करिया सांप, वो जो दिलावर के दुआरे निकला था परसों'
'चल...झूठा साला'
सूखा लौंडा दुखी हो गया
'अबे तू देखता नहीं है...मैं इसीलिए बोला था, तू पहले देखता नहीं है फिर मैं बोलेगा तो मानता नहीं है..सच्ची... सांप के जितना लम्बी हो गई थी....पूरी एक हाँथ लम्बी.....माँ कसम'
'चल साले'
'मादरचोद' (सूखा लड़का, एकदम धीमी आवाज़ में)

दिलावर के दुआरे सांप, पेटीकोट और सीटू का विधवा विलाप
टोले में सांप निकलना कोइ नई बात नहीं थी, सांप कभी भी निकल आता था, रात-बे-रात, और कहीं भी निकल आता था
दुआरे पे , अरगनी पे, धन्नी पे, अटारी पे, खटिया के नीचे या पनारे पर
उस दिन जब दिलावर के दुआरे सांप निकला तो ये भी कोइ बड़ी भारी बात नहीं थी, सांप के काटने से जब माधो मरा था तो भी कोइ बड़ी भारी बात नहीं हुई थी
माधो की घर वाली का चौदह दिन बाद ब्याह करवा दिया गया था और अब वो मदनपुर में अपने ससुराल चली गयी थी
दिलावर के दुआरे जब सांप निकला तो सीटू गर्दन फाड़ फाड़ के हल्ला मचा रहा था
'हो...हू-हू-हू...हुस हुस हुस...हुर्र-रर--रर-हुर्र'
'हो...हू-हू-हू...हुस हुस हुस...हुर्र-रर--रर-हुर्र'
दिलावर बाहर आया तो उसका मुह ऐसा तमतमाता था जैसे सुलगता हुआ कोयला फूंक मारे जाने पर चिटकता है..
'का रे बनच्चर ...काहे हल्ला मचाता है '
'हो...हू-हू-हू...हुस हुस हुस...हुर्र-रर--रर-हुर्र'
'बानर की औलाद, चुप हो जा नहीं तो मुह तोड़ देंगे हम'
'हो ...'
'अबे साले भाग बानर-जात'
सीटू सरपट भागा
सरपट सांप भी भागा, दिलावर के घर के अन्दर
अन्दर से सरपट कोइ बाहर की तरफ भागा. सांप नहीं था, कोइ और ही जन्तु था
मानुस था शायद ..हाँ मानुस ही था
नहीं औरत थी
हाँ औरत ही थी ..
क्यूंकि वो जल्दी में धोती लपेट के भागी थी
और इसलिए भी औरत ही थी क्यूंकि जब वो सब कुछ बटोर के भागी थे तो दुआरे उसका पेटीकोट गिर गया था
दिलावर ने सीटू का सारा गुस्सा करिया सांप पे निकाला और उसका फन ऐसा कुचला की 'फूं' भी नहीं कर पाया
सांप ऐसे मारा जैसे एक दिन सूखे लौंडे ने टट्टी के वक्त पानी डाल के मार डाला था
दिलावर को नींद नहीं आ रही थी, पेटीकोट बिछाया खटिया पर, लेटा, तब जा के कहीं खर्राटा आया उसको

सूखा लौंडा, ट्रेक्टर, हवाई चप्पल, सोटा और महतारी
'अम्मा खाना दे'
'खा ले जा के अरगनी पे बटोई में रक्खा है'
'दाल है ये तो'
'लपसी खाएगा लाट-साहब, कहे तो माहुर(जहर) ले आऊं?'
'मैं दाल नहीं खाऊंगा, मुझको टट्टी पतली आती है तो भंवर मुझको चिढ़ाता है, सीटू को भी मोटी टट्टी आती है'
'सोंटे से मारूंगी दलिददुर कही का, खाना है तो खा नहीं तो पडा रह पेट में गीला गम्छिया बाँध के, भूख कम लगेगी'
'नहीं खाऊंगा'
'मैं बता रही हूँ खा ले बनच्चर नहीं तो सोंटा बजेगा आज'
सूखे लौंडे ने खाना नहीं खाया, महतारी घर का काम करती रही
लौंडा मिट्टी का ट्रेक्टर सारे घर में घुमा रहा था, उसने कूड़े से एक जोड़ा हवाई चप्पल जुटा ली थी, उसमे कोले कर के उसने रबड़ के चार पहिए भी निकाल लिए थे
ये ट्रेक्टर उसका दिमाग खाने से निकाल कर थोड़ी देर के लिए उधम में घुसेड देता था, लेकिन यहाँ वहां घंटा भर नाच लेने के बाद उसको फिर खाने की सुरता(याद) आ गई
'मुझे खाना दो, भूख लगी है'
'कहा ना मैंने की दाल पी ले '
लौंडा समझ गया कि उसे दाल के अलावा कुछ और जुगाड़ नहीं मिलाने वाला है, इसलिए वो फिर से ट्रेक्टर टहलाने लगा
अम्मा के बगल में आ कर खड़ा हो कर सोचने लगा की क्या तिकड़म भिड़ाए की जुगाड़ बन जाए उसका ...एक हाथ से नाक और दूसरे हाथ से कांख खुजाता रहा ...थोड़ी देर बाद बोला ...
'तुम हमको प्यार नहीं करती हो अम्मा...भंवर की अम्मा उसके लिए बाजरे का जे-मोटा-मोटा रोटला बनाती है ....लेकिन तुमको फिकर काहे होए हमारी ...'
महतारी को गुस्सा आ गया और उसने कपड़े धोने का पटा लौंडे के फेंक कर मारा, गलती से पटा लौंडे के सर पर जा लगा और उसका सर फट गया
महतारी भागती हुई दिए की ढिबरी उठा लाई लेकिन उसमे तेल नहीं बचा था ...
'अच्छा खाना खा ले ...'
लौंडा कुछ नहीं बोला
'अच्छा जा बाहर जा के खेल आ ...'

रानी, चूतिया, असर्फियाँ और जोगीरा सारा-रा-रा
'उस दिन कहे भागी थी तू...हम कसम बता रहे हैं काट डालेंगे...बोले थे ने की हिलना मत, हम देख के आ रहे थे ना की कौन चिल्ला रहा है दुआरे ...तो हिली कहे तू ... अब माँ कसम हंसिया से काट डालेंगे हम'
'सांप आ के घुस रहा थी धोती में ...मूरख मानुस....भागते नहीं का हम ....
गुस्सा काहे होता है'
'अच्छा गुस्सा ना हो .. आज हम वो कर देंगे तोहरे लिए ...जोगीरा सारा-रा-रा
दिलावर की आँखे चमक गईं, उसको उम्मीद नहीं थी की औरत अचानक से ऐसी बात बोलेगी ..उछल के खटिया पे जा बैठा, उकडू बैठ के ऐसा घूरे था .. जैसे ...जैसे ..मास्टर की क्लास में मुर्गा बना हुआ सीटू
'मैं तुझे रानी बना दूंगा एक दिन..सच कहता हूँ'
'चल साले झूठे'
'झूठ बोलूँ तो मेरी कखरी में खाज हो जाए और मैं खुजा खुजा के मर जाऊं ....मैं सच कहता हूँ तुझे रानी बना दूंगा एक दिन'
'क्यूं , तेरी गाय असर्फियाँ हगने लगी है आजकल?'
'हाँ यही समझ ले मेरी रानी'
'आज हम वो कर तो देंगे तोहरे लिए.... लेकिन ....हमारी सरत है ...कि अब और हमको चूतिया नहीं बनाइएगा जी आप ...ये रोज रोज हमसे पेटीकोट संभाल संभाल के आइस-पाइस नहीं हो पाएगी , कहे दे रहे हैं '
'अरे जो चाहिए उठा ले जा, पूरा घर और पूरी कोठरी पड़ी है तेरे लिए...'
दिलावर अधीर हुआ जा रहा था ....
'हमको चूतिया बनाने की कोसिस मत करना...हम एक बार फिर से कहे दे रहे हैं '
'हाँ ...कह दिए ना ...अब जादा मान मत कराओ नहीं तो साली बचोगी नहीं हमसे... बताए दे रहे हैं'
....
'जोगीरा सारा-रा-रा'
'जोगीरा सारा-रा-रा'
दिलावर गाना गाता था ... और वो नाचती थी
उस दिन वो बहुत नाची और उस दिन के बाद अक्सर दिलावर गाना गाता था, जोगीरा सारा-रा-रा और वो उसके मन का ठुमका लगा देती थी
...
'इसको खोल ना'
...
'और ये'
....
'ये ले'
जोगीरा सारा-रा-रा ....
'जोगीरा सारा-रा-रा'...

काला लौंडा, सूखा लौंडा, पुआ और टट्टी
'अबे कल क्या खाया था तूने'
'बता ना साले'
'गाली मत दिया कर'
'अबे ...'साले' गाली नहीं होती है...कितनी बार बताया है ...
'अच्छा वो सब छोड़... बता ना कल क्या खाया था तूने'
'दाल तो नहीं खाई होगी, और बाजरे का रोटला भी नहीं ....
आजकल ...आजकल तेरी टट्टी देख के लगता है की बहुत मालपुआ दबा रहा है'
...
'अबे बता ना '
'हाँ ....गुड़ खाया था और पुए खाए थे.... बाजरा मुझे गले से नहीं उतरता है ... मैं बस पुआ खाता हूँ'
'चल साले ..मैं नहीं मानता'
'मत मान ...मैं कब बोल रहा हूँ मानने के लिए'
'अबे नहीं यार ...मैं मान रहा हूँ ...आजकल तू रोज मालपुआ खा रहा है...मैं टट्टी देख के बता सकता हूँ...इतना तो तजुर्बा है ...
मोटा लौंडा उंगली से जमीन पर सांप बना रहा था लेकिन उसका जी नहीं लग रहा था आज, दिमाग तो उसका पुए में ही अटका हुआ था
.....मेरे लिए भी माल पुआ लाएगा एक दिन ?'
'देखूंगा ...'
'ले आना भाई ...मैं गाली नहीं दूंगा तुझे फिर कभी ....
'स्साले' भी नहीं बोलूँगा ....
सच्ची...माँ कसम '
'देखूँगा '
'अबे भाई नहीं है ...देख मेरी अम्मा तो मुझे प्यार करती नहीं है...तेरी अम्मा तो तुझे कितना प्यार कराती है ...ले आना भाई'
'नहीं , मेरी अम्मा मुझे प्यार नहीं करती है ...वो किसी से प्यार नहीं करती ..वो दिलावर पे भी चिल्लाती है ...बापू के मरने के अगली रोज जब दिलावर उसके लिए चूड़ियाँ लाया था तो उसने दिलावर से भी कहा था की पटा फेंक कर मारेगी उसे .....और कल उसने मुझे भी पटा फेंक के मार दिया था...सर फट गया था मेरा ...ये देख निसान ...'
'अबे हाँ बे ....गहरा निसान है ...'
'अबे पागल है क्या ...टट्टी के हाँथ से क्यूँ छू रहा है ...''
'सोरी बे सॉरी' (काला लौंडा-धीमी आवाज़ में)
'मादरचोद..' (सूखा लड़का-तेज आवाज़ में)

सूखा लौंडा गन्ना उखाड़ के फेंक रहा था और काला लौंडा दुखी मन से ...उचक के ...दोनों टांगो के बीच से अपनी टट्टी देख रहा था
अचानक से चौंका और चिल्लाया ...
'अबे...'
'अबे...'
'अबे देख ना साले ...'
'क्या यार ...
देखना था ना ....'
सूखा लौंडा गन्ने की ठूंठ उखाड़ने में बिजी था ...