Sunday, January 23, 2011

परवाज़


CHAPTER ONE - 'अजूबा, गया प्रसाद और सुपर कमांडो ध्रुव'

नानू के लिए ये वाला सन्डे अच्छा भी गया और बुरा भी. बुरा ये हुआ की नानू की जगह, सुबू से मिलने अजूबा आया था, हाँ..वही...बहारिस्तान का रखवाला...मूवी वाला.सुबू उसका सबसे अच्छा दोस्त था.लेकिन नानू की समझ से बाहर था की वो उससे मिलने क्यूँ नहीं आया? अजूबा काले कपड़े में सफ़ेद घोड़े पर आया तो एक झटके में तो सुबू की सांस ही अटक गयी थी. ख़ैर.. सुबू डरा नहीं ..बातचीत हुई ...
दोनों पहाड़ी पर गए, किला दिखाया.. स्कूल दिखाया ..उसने वो घर भी दिखाया जो नानू और सुबू ने चितकबरे पिल्ले के लिए बनाया था. नानू को इस बात से रोमांच भी हुआ की अजूबा उसका बनाया हुआ घर देख कर खुश हुआ होगा, लेकिन कहीं न कहीं उसको ये भी लग रहा था की सुबू ने उसका नाम लिया भी होगा या नहीं? उसने बताया होगा, या नहीं, कि , टाट और मिट्टी से मजबूत घर बनाने की तरकीब नानू ने ही भिड़ाई थी. अगर वो बताता तो अजूबा शायद कभी उससे भी मिलाने आ जाए, क्यूंकि कमजोरों का दोस्त वो भी है, और नानू भी. उसे भी जानवर पसंद हैं, और अजूबा को भी. तभी वो घोड़े को अपना भाई बोलता था और नानू चितकबरे पिल्ले को.

सुबू ने अजूबा को वो बबूल का पेड़ भी दिखाया जिस पर पेशाब करने से गया प्रसाद को जिन्न चढ़ गया था. सुबू ने अजूबा को बताया की उस दिन के बाद से गया प्रसाद रोजाना अपने दरवाजे से पेड़ तक लोटते-लोटते जाता है और जिन्न के सामने उठक-बैठकी करता रहता है. उसकी ज़िंदगी इस क्रम में गोल-चक्कर फंस गई है. और वो गोल चक्कर तभी टूटेगा बारिश से बबूल के पेड़ का एक एक काँटा धुल के वापस साफ़ हो जाएगा. तीन महीने से बारिश नहीं हुई थी और बादलों का मिजाज़ भी कुछ ठीक नहीं नज़र आ रहा था.

अजूबा सुबू को बच्चा समझ कर उसकी बात पर हँस दिया. बस सुबू का माथा ठनक गया..ठनकने वाली बात थी भी ..
ये राज़ उसके अलावा सिर्फ नानू को पता था, और उसके बाद उसने भरोसा कर के अजूबा को बताया था, बिना 'बाई-गौड' की कसम दिए. दोनों के बीच बहुत लड़ाई हुई, कभी ये भारी तो कभी वो भारी, लगता था की दोनों में जीतेगा कौन इसका नतीज़ा निकलेगा ही नहीं. सुबू अजूबा से जीत ही नहीं सकता था अगर नानू ने उसे अजूबा की कमज़ोरी ना बताई होती, सुबू ने अजूबा को उसके कंचों पर फैट मारा और अजूबा उठ नहीं पाया.

नानू दुखी था की अजूबा उसके बताए राज़ की वजह से हार गया, और दूसरा, वो उससे मिलने क्यूँ नहीं आया !!

ख़ैर कुछ अच्छी बातें भी हुई.
मसलन :

-उसने रेल की पटरी पर जो सिक्का रक्खा था वो चुम्बक बन गया था,
नानू का ख़ुद का बनाया हुआ चुम्बक.

-चितकबरा पिल्ला जो परसों ईंट और टाट के बनाए घर से भाग गया था वो आज वापस लौट आया था. आते ही नानू के पैर चाटने लगा.आई ने सुबह ही उसको डांटा था की उसके पैर जंगलियों की तरह हो गए हैं, नहा ले, और फिर भी, चितकबरा पिल्ला उसके पैर चाट रहा था. उसकी आँखों से रोमांच का आंसू गिरा था, कहना मुश्किल था की आंसू रोमांच का था, या ममता का, या फिर ख़ुशी का. उंगली पर लेकर करीब से देखते तो शायद अंदाजा होता की उसमे नमकीन के अलावा मिठास किस बात की थी.

-गणित की किताब के पन्नों के बीच में उसने जो पंख दबाया था, उसने एक बच्चा दिया था. एक बड़े पंख से तीन छोटे-छोटे पंख निकले थे. उसका जी करता था की यही सारे पंख अपने बाज़ू में बांधकर उड़ जाए और सारी दुनिया को बता दे की पन्नों के बीच में पंख दबाने से बच्चे निकलने की बात झूठी नहीं है, और उसे मूर्ख समझने वाले लोग उसकी उड़ान को ऐसे देखते जैसे नागराज की कलाई से सांप निकलता देख कर सबका मुह खुला का खुला रह जाता है.

-ध्रुव की कॉमिक्स 'ख़ूनी खिलौना' रिलीज़ हुई थी, और तौसी की रानी ने उसके बेटे 'टनी' को जनम दिया था, उसे ऐसा लगा कि उसका भाई दुनिया में आया हो. अपनी नीली पैंट और पीली बुशर्ट पहन कर वो घंटों घूमा था. अपनी बहन को 'बौना-वामन' बना कर उसने घंटों दौड़ाया था. बदले में ये तय हुआ था की अगली बार वो 'ग्रैंड मास्टर रोबो' बनेगा और उसकी बहन 'ध्रुव' बनेगी.

लेकिन...
...

अजूबा उससे मिलने क्यूँ नहीं आया ? अजूबा का सबसे अच्छा दोस्त तो नानू ही था ! और सुबू को तो पता ही नहीं था अली और अजूबा एक ही इंसान निकलेंगे. जबकि उसने सुबू को पहले ही बता दिया था की अली और बहारिस्तान का मसीहा अजूबा एक ही इंसान हैं.


CHAPTER TWO - 'चुम्बक, स्कोर कार्ड और महेश मोटा'

अगले दिन स्कूल में, इससे पहले की सुबू उसको अजूबा और उसकी फाईट की कहानी आगे सुनाता, नानू ने उसे अपना चुम्बक दिखाया.

"अबे ये क्या है ?"
"फट गई !! चुम्बक साले!!"
"कहाँ से पाया बे?"
"मैंने ख़ुद बनाया है , ट्रेन से"
"क्या बात कर रहा है नानू, ट्रेन से चुम्बक कैसे बनता है, गोली बाँध रहा है साले !"
"गोली तो तू बांधता है साले, मैं नहीं मानता की अजूबा तेरे से मिलने आया था, बता ज़रा कि बहारिस्तान का सबसे बड़ा शैतान कौन है ?"
"अबे तू बुरा मत मान दोस्त. ये चुम्बक से क्या क्या कर सकते हैं?"
"अबे साइकल, मटकी, लड़की, कुछ भी खींच सकते हैं इससे!! फ़रिश्ते मूवी में नहीं देखा था !! उसमे धर्मेन्द्र और विनोद खन्ना चुम्बक से कितना मचाते हैं!!"
"अबे सही बे..."
"तुझे एक ख़ास बात बताता हूँ, इस चुम्बक का एक टुकड़ा अगर दुसरे हिस्से से अलग कर दोगे, तो मरने से पहले दोनों कहीं से भी एक दुसरे को खोज के चिपक जाएंगे"

सुबू का चेहरा आश्चर्य से एक इंच चौड़ा हो गया था, भौंहे कानों तक तन गईं थी और वो वही हरकत कर रहा था जो वो अक्सर हैरानियत में करता था... थूंक गुटकते हुए उसने पूछा...
"वैसे ही जैसे इच्छा-धारी नागिन मरने से पहले अपने नाग को खोज लेती है"

"हां-हां..वैसे ही.. सेम कांसेप्ट नहीं है, लेकिन ..हाँ काफी कुछ वैसे ही"

अजूबा को हराने के बाद भी सुबू नानू से पिछड़ता जा रहा था..
इस बार उसने थूंक नहीं गुटका.. चेहरे पर अथॉरिटी और रहस्य का मिश्रण लेप कर भारी आवाज में बोला ..

"भाई, एक बात मैं भी बता रहा हूँ, प्लीज़ किसी और को मत बताइयो, बाई-गौड का कसम खा पहले"

नानू ने चालाकी से 'बाई-गौड' की जगह 'बाई-गोट' का कसम बोल दिया. वो हमेशा ही ये चालाकी करता था .आज वो एक बालिश्त भी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहता था, कि सुबू उससे ज़्यादा कलाकार लौंडा साबित हो जाए. प्लानिंग सही काम कर रही थी. मास्टर प्लान परत-दर-परत अपना असर दिखा भी रहा था. उसने सबह ही ध्यान से चुम्बक अपने बस्ते में डाल लिया था, ताकि स्कूल पहुँचते ही स्कोर-कार्ड 1 - 0 से, 1 -1 हो जाए. चुम्बक ने अपना असर दिखाया भी, और, वो ये बात देख भी सकता था. सुबू का चेहरा उतर गया था. नानू उसे एक ज़माने से जानता था. सुबू जब भी निरुत्तर होता था तो वो गांड खुजाने लगता था. नानू ने चेक किया, उसकी उंगलिया खाकी पैंट खुरच रह़ी थीं.

"हाँ बता.. क्या बात है ?"
"अबे ... अगर नाग-पंचमी को किसी को सांप काट ले तो वो भी इच्छा-धारी सांप बन जाता है..."
नानू एक मिनट के इए सुबू को अवाक देखता रह गया..क्यूंकि कायदे से बात थी तो सही. बात निराधार नहीं थी, लॉजिक था...सौलिड लेकिन आज बात मानने का दिन था ही नहीं.
"अबे इच्छाधारी सांप होने में ऐसा क्या भोकाल है ? दुनिया का सबसे बड़ा इच्छाधारी सांप नागराज है, और वो ध्रुव से हार जाता है"
"घंटा !! ऐसे तो मैं भी कह सकता हूँ की परमाणु से बड़ा तेज कोई नहीं है. अबे हर हीरो की अलग ताक़त है, आज तू हर बात पर मत भिड़ मुझसे"

अब ये ऐसा नाज़ुक मौका था जहां पर नानू को रोक पाना मुश्किल था. वो कॉमिक्स खाता था और कॉमिक्स ही पीता था. परमाणु जैसे हीरो का नाम ध्रुव और नागराज के साथ लेना एक ऐसा अपराध था जिसके लिए क्षमा नहीं बनी है. नानू अपनी बात आगे बढाता हुआ बोला,

"परमाणु... !! अबे तू पागल क्या है!! परमाणु से झान्टू हीरो कोई नहीं है. वो फर्जी है एकदम....
...अबे परमाणु के पास एक ही तो ताकत है, और वो है परमाणु-बम. वो भी कभी, वो छोड़ नहीं सकता फट्टू. क्यूंकि छोड़ेगा तो खुद ही मरेगा सबसे पहले...
तू मुझसे एकदम फालतू की बात मत किया कर "
सुबू चुप हो गया ....क्यूंकि ..एक बार फिर ..बात निराधार नहीं थी, लॉजिक था...सौलिड !!
कभी कभी सुबू हैरान हो जाता था की कैसे नानू इतना सब कुछ जानता है !!
फिर भी सुबू अब हत्थे से उखड़ चुका था, क्यूंकि नानू उसका हर-एक तर्क बेदर्दी से काट दे रहा था. सुबू बोला,
"तू चूतिया है"
"अबे तू चूतिया है"
"तू महा-चूतिया है"
"अबे ...तू महा-महा चूतिया है"
"तू महा-महा-महा-महा चूतिया है"
"मैं जितने बार चूतिया हूँ...तू उससे एक बार जादा चूतिया है...अब जितने बार महा-महा करना हो कर ले..तू अपने आप उससे एक बार जादा चूतिया हो जाएगा !!!!"

नानू ऐसा दाँव खेल चूका था जिसके आगे तर्क या कु-तर्क की गुंजाइश ही नहीं थी. लड़क-पने में मैं भी तमाम-बार ऐसे मोड़ पर फंस कर निरुत्तर हो चूका हूँ. दर-असल इसे डेड एंड कहते हैं, क्यूंकि इसके आगे कोई तरीका काम नहीं करता और सामने वाले को हार मान लेनी पड़ती है. सिर्फ एक दांव ऐसा है जो ऐसे में वही काम करता है जो धोबी-पछाड़ करता है. उतना ही असरदार.
सुबू ने भी वही किया.
"जो पहले बोलता है, वही होता है!!!"
ये क्या !! दाँव सिरे से उल्टा पड़ चुका था. स्कोर कार्ड फिर से 2 - 1 हो गया था.
नानू का चेहरा उतर गया. और सुबू ये बात पढ़ सकता था. उसने उसे सौरी बोलने में ही समझदारी समझी. लेकिन ऐसे में सौरी भी काम नहीं कर रहा था. और सुबू को तब वो करना पड़ा जो वो बिल्कुल भी नहीं करना चाहता था. सुबू बोला,
"अच्छा सुन...कल कोई अजूबा-वजूबा मुझसे मिलाने नहीं आया था !!"
सफ़ेद झंडे बाहर निकाल लिए गए, और लड़ाई ख़तम कर दी गई...
नानू ने सुबू को अपना चुम्बक खेलने के लिए दे दिया.. और तभी गणित के टीचर महेश जी क्लास में दाखिल हुए.
महेश जी डील-डौल में जितने मज़ेदार प्राणी थे , स्वभाव से उतने ही खूंखार
जलवा ये था की छींक मात्र दें तो लड़के मूत दें. महेश जी ने आते ही बोर्ड पर एक सवाल लिख दिया. उनकी चौक से सवाल छूटने का मतलब ही यही हुआ करता था की लड़के उसे हल करना शुरू कर दें.
और वो सवाल लिखने के बाद अपने पेट पर हाँथ फिराने में खुद को व्यस्त कर लेते थे.
इधर नानू और सुबू वापस से हुई दोस्ती की ख़ुमारी में मगन थे. वापस मिलती दोस्ती अक्सर नई-नई दोस्ती से जादा मीठी होती है.
सुबू ने नानू के गल-बहियाँ डाल कर कहा,
"दोस्त बाई-गौड की कसम खा तो एक बात बताऊँ..
....अच्छा छोड़...मत खा...
मैं बताता हूँ, एक बार इस हांथी ने अपने बच्चे को कंटाप मार दिया था तो उसका कान फट गया.. और वो उसके बाद से आज तक बहरा है"
"चल साले ...क्या सच में?"
"और नहीं तो क्या...मैं क्या भाई से झूठ बोलूँगा ?"
"मुझे तो लग रहा है कि तो झूठ बोल रहा है ..क्यूंकि इसका ना तो कोई लड़का है और ना ही इसका कोई लड़का हो सकता है !! मुझे सीटू भैया ने बताया था की गले लगा कर होंठ पर किस करने से बच्चा होता है ..इसके और इसकी बीवी के मोटापे को देख कर तुझे लगता नहीं है की दोनों का पेट लड़ जाता होगा .."
ये एक ऐसी लाइन थी जिस पर सुबू की टोंटी खुल गई और वो चिर-काल के लिए हँसना शुरू हो गया.
नानू को पता था की जब सुबू हंसना शुरू हो जाता है तो उसका रोकना लगभग असंभव हो जाता है. मुंडी नीचे झुका के वो बस यही मना रहा था की महेश जी उन दोनों को ना देख लें..नानू ने सुबू को जांघ पर चिकोटी भी काटी की वो चिहुंक उठे और शायद हँसना बंद कर दे...लेकिन...
जिसका डर था, वही हुआ. दोनों की पेशी लगा दी गई.

महेश जी का दंड देने का अंदाज़ भी निराला था. अगर अपराध छोटा हो तो फर्स्ट डिग्री, जिसके तहत चॉक से बनाए हुए बड़े गोले को नाक से रगड़ कर मिटाना होता था, दूसरी डिग्री के तहत ऐसे चार गोलों को नाम-ओ-निशाँ मिटाना होता था और अगर छटांक भर भी चॉक छूट गई तो थर्ड डिग्री, जिसमे पूरे ब्लैक-बोर्ड की सफाई डस्टर की जगह नाक से करनी पड़ती थी.
दोनों की थर्ड डिग्री मिला.
क्लास के सारे बच्चों में भाई-चारे की लहर दौड़ गई. पिटने वाले भाई-भाई और बचने वाले उससे भी ज्यादा भाई-भाई.
एक-एक अक्षर मिटाते हुए दोनों यही सोच रहे थे ऐसा क्या किया जाए की मोटे को ठीक बरगद के पेड़ के पास मुतास लगे और मूत की आखिरी बूँद छिटकते ही जिन्न उसके शरीर से चिपक जाए.
दोनों को अगले दिन बोर्ड पर लिखा हुआ सारा कुछ पचास बार कॉपी पर लिखने का दंड दिया गया.
बुझे मन, बोझिल पाँव, और चमकती नाक लेकर दोनों अपने-अपने घर की ओर रवाना हुए.


CHAPTER THREE - 'मान-ना-मान मैं-तेरा-भगवान'

लड़क-पने का मानना-ना-मानना भी अजीब होता है. मानो तो भूत-प्रेत असली, ना मानो तो देवता नकली, पत्थर की मूरत- बेजान सी सूरत. दिल लग जाए तो माटी में भी स्वाद, ना लगे तो दाल-भात बे-स्वाद.
नानू रात भर से कांख में प्याज की गुलथी दबा के लेटा हुआ था. उसका 'मानना' ये था की ऐसा करने से प्याज की गर्मी कांख से गुज़र कर माथे पर चढ़ जाती है और बुख़ार, नहीं तो हरारत, ज़रुर चढ़ जाता है. दोनों ने तय किया था की रात भर प्याज दबा कर सोएंगे, सुबह जब माँ उठाने आएगी तो ख़ुद ही स्कूल जाने के लिए मना कर देगी.
सुबह जब माँ उठाने आई तो नानू ने भारी आवाज़ में जवाब दिया कि आज तबियत कुछ ठीक नहीं है. माँ ने माथा छुआ तो मामला चमा-चम ही नज़र आया. माँ से बहस करना बेकार था, पता था कि जाना ही पड़ेगा, बचपन में माँ का कहा पत्थर कि लकीर नहीं, ख़ुद पत्थर ही होता है, और ज़िक्र नानू की माँ का हो तो चट्टान.
कुछ भी तो अच्छा नहीं हो रहा था, अजूबा-तो-अजूबा, मुआ प्याज भी धोखा दे गया. नानू बेमन से बुस्शर्ट की बटन से एक पल्ला दूसरे पल्ले में टांक रहा था, तभी खिड़की पर सुबू ने सिग्नल दिया.

"हैं-चू-हैं-चू
भौं-भौं
हैं-चू
हैं-चू"

नानू समझ गया की सुबू ही आया है, गधे और कुत्ते की आल्टरनेट आवाज़ उससे घटिया तरीके से निकालने वाला आज तक पैदा नहीं हुआ था.
खिड़की में से एक अंडाकार मुंडी धीरे-धीरे नुमायाँ हुई, तो वही था.
सुबू ने पूछा, "प्याज ने काम किया ?"
जवाब में नानू का बिना छिलके के प्याज जैसा मुह बना देख कर वो समझ गया की कुछ नहीं हो पाया. दोनों झोला ले के स्कूल के लिए निकल पड़े.
"अबे नानू, मेरी नाक देख.. एकदम तोते जैसी हो गई है. कल मेरी अम्मा ने पूछा की ये क्या हो गया, तो मुझे कहना पड़ा की सवाल लगाते लगाते झपकी आ गई थी तो नाक सीधे मेज से टकरा गई.. अम्मा ने डांटा की जादा पढाई मत किया कर. लेकिन कसम से इतनी घिसाई तो कारखाने में बापू भी नहीं करता होगा"
"भाई, मैं क्या सोच रहा हूँ पता है?"
"क्या"
"अगर आज भी घिसाई करनी पड़ी तो नाक की जगह खाली नथुने बचेंगे"
नानू की बात पर सुबू की हंसी छूट गई, "अबे यार तेरी यही बात तो मुझे अच्छी लगाती है, कितनी भी लगी पड़ी हो, तू गज़ब हंसाता है"
"साले तुझे हंसने की पड़ी है...मैं हंसा रहा हूँ?....मैं आज स्कूल नहीं जाने वाला, नाक की जगह नथुने लेकर तुझे घूमना हो तो घूम..."
"यार स्कूल तो मुझे भी नहीं जाना, किसी तरह आज बच जाएं, तो फिर उसका मुह सीधे सोमवार को देखना पड़ेगा, भाई बचा ले ना यार"
दोनों मास्टर-प्लान बनाने बैठ गए. सुबू आज फिर नर्वस था, सो खुजली जारी थी, नानू यहाँ-वहाँ पेंडुलम की तरह घूम रहा था. सुबू उसे प्रोत्साहन की नज़रों से ऐसे देख रहा था की नानू जो भी कर रहा है, शायद वो इस सारे क्रिया-करम और प्रोपोगैंडा के बाद हर बार की तरह चिल्ला पड़े, "आइडिया !!"
लेकिन इस बार आइडिया नहीं निकला, तय किया गया की स्कूल की बजाय मंदिर चला जाए.

दोनों हाँथ जोड़ कर और आँखें बंद कर के खड़े थे. बीच-बीच में आँखें ख़ाली ये देखने के लिए खुलती थी की बगल वाला भी झंडा बुलंद किए खड़ा है या दूसरे को देख कर हंस रहा है. लेकिन दोनों ही सच्चे भक्त की तरह हाँथ जोड़े खड़े थे. हिन्दुस्तान में आस्था से ज्यादा मज़ेदार चीज़ सिर्फ भगवान ही है, झटके में डोलती है, और भटके तो बोलती है. और बच्चों की आस्था इतनी मासूम हुआ करती है ही की ख़ुदा ख़ुद भक्त बन
जाए. दोनों मन में प्रार्थनाएं पढ़ रहे थे, क्यूंकि उनका मानना था की अगर कोई प्रार्थना सुन लेता है तो तो वो पूरी नहीं हो सकती :

"हे भगवान, मैं एक अच्छा लड़का बन के दिखाऊंगा.. मुझे बस एक बार 'गणित के मास्टर-जी' से बचा लो"
"हे भगवान मैं कभी उसे मोटा भी नहीं कहूँगा... 'उन्हें' मोटा नहीं कहूँगा..." (सुबू ने जल्द ही करेक्शन किया)
"मैं माँ का सारा कहना मानूंगा"
"कभी गमले में दूध का गिलास नहीं बहाऊंगा"
"अगली बार से अपनी बहन को बेवक़ूफ़ नहीं बनाऊंगा. और जब उसका टर्न होगा तो उसे फिर से 'बौना-वामन' नहीं बनाऊंगा. वो ध्रुव बनेगी और मैं मार भी खा लूँगा "
"अगली बार से हमेशा स्कूल का काम पूरा रक्खूँगा"
"कॉमिक्स पढना छोड़ दूंगा....

..........................................."

नानू ने आँखे खोल ली. भावनाओं में बह कर वो शायद थोड़ा ज्यादा बोल गया था. 'नेगोशियेशन' जरुरी था..

"ज्यादा कॉमिक्स नहीं पढूंगा"

दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा, आम-सहमति के हिसाब से तय किया गया की भगवान को दो रूपए भी चढ़ाया जाएगा, सुबू के पास पचास पैसे के तीन सिक्के थे और नानू के पास एक. दोनों ने उसे मूर्ति के पीछे रख दिया, ताकि भगवान के अलावा उसे कोई और ना ले सके. इस निर्णय को लेने के लिए जिगरे, कलेजे, और हिम्मत, तीनों की ज़रूरत थी, तीनों लगाए गए, और दोनों दोस्त एक आस्था को लेकर मंदिर से अपने अपने घर रवाना हो गए.


CHAPTER FOUR - 'जादूगर शंकर, स्किन कलर कि पैजामी, और आबरा-का-डाबरा'

सुबह सुबह आज फिर खिड़की पर सिग्नलिंग चल रही थी. सिग्नलिंग का पैटर्न बा-कायदे फिक्स हो रक्खा था. वही आल्टरनेट हैं-चू , भौं भौं ..और उसके पश्चात कांच की खिड़की से एक अंडाकार आकृति का नुमायाँ होना. पर पैटर्न में आज उत्सुकता कुछ-एक, दो चम्मच ज्यादा थी. इसीलिए आज हैं-चू -हैं-चू थोड़ा लहरा ज्यादा रहा था. जैसे सावन का गधा और बारिश का चुदासा कुत्ता.
नानू कके खिड़की पर आते ही सुबू ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया -

"दूसरी दुनिया में स्वागत है ,
मात्र पचास पैसे में !
अचम्भे की दुनिया में ,
मात्र पचास पैसे में !
पार-लौकिक शक्तियों की दुनिया में ,
मात्र पचास पैसे में !
मात्र पचास पैसे में !
भरम और रहम की दुनिया में ,
मात्र पचास पैसे में !
जादूगर शंकर की दुनिया में ,
आपका स्वा ... ...."

ननु ने सुबू की जबान अंगूठे से ठेपी लगाकर जाम कर दी. पूछा, "साले बावरे, क्या हो गया ?"

"आन्हू-आन्हू... जादू को दुनिया में ...आन्हू आन्हू"
"अरे बावरे .. कौन, कैसा जादू ?"
"आन्हू आन्हू...आन्हू आन्हू"
"अबे साले बता ना , ये बन्दर-चाल बाद में कर लेना!!!"
"भाई मेरे, आज सन्डे है... फिर कल, परसों, तरसो, थर्सो छुट्टी ....महेश मोटे को भूल जा. कसबे में जादूगर शंकर आया हुआ है. जादू देखने चलते हैं. "
नानू की आँखें अँधेरे की बिल्ली की तरह चमक रही थीं. छोटे बच्चों की आँखों की भंगिमाएं संक्रामक होती हैं. दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे तो चमक एक की आँखों से दूसरे की आँखों तक फुदक आती थी. 'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार' का 'हाउ आई वंडर व्हाट यू आर' उन्ही आँखों में छिटक-छिटक कर तुक-बंदी बिठा रहा था. महेश मोटा हार गया था, जादू की दुनिया जीत रही थी, दोनों बनच्चर उछल उछल कर गा रहे थे ...
"आज की रात सनम डेंस करेंगे ...डेंस करेंगे , रोमेंस करेंगे.."
"ओ-हो..आज की रात सनम..."
लेकिन अचानक सुबू ने नानू के डेंस पर लंगड़ मारा. कुछ सोच के उसका मुह समोसे जैसा हो गया था.
"बड़े भाई.. जादू देखने के लिए पैसे कहाँ से लायेंगे ... जो कुछ था वो सब तो मंदिर में रखवा दिया तूने"
छोटे बच्चों की आँखों की भंगिमाएं संक्रामक होती हैं. एक और समोसा छन गया. डेंस रुक गया, रोमेंस रुक गया.

"चल मंदिर "
"मंदिर ?", सुबू ने पूछा.
"हाँ मंदिर.."
बताया था ना, हिंदुस्तान में आस्था से मज़ेदार सिर्फ भगवन ही होता है. नानू ने सुबू को समझाया की भगवान को पैसे से कोई मतलब-वतलब नहीं होता, चल कर देखा जाए, अगर भगवान ने पैसा ले लिया होगा तो कोई बात ही नहीं, अगर नहीं लिया होगा तो उसका यही अर्थ है की उसे पचास पैसा नहीं चाहिए. गलियाँ सरपट काटते हुए, बड़ी साँसों से छोटी साँसे छांटते हुए, छंटाक भर के दोनों, क्षण भर में मंदिर पहुँच गए,. दिल जोर का धड़कता था, आज प्रश्न भगवान के लालच पर उठा था, परीक्षा पार करनी जरुरी थी...
पचास पैसे के सिक्के वहीँ रक्खे थे, क्यूंकि कमबख्तों ने ऐसी जगह छुपाए थे, कि, पुजारी क्या, भगवान भी उठाता कैसे ...

दोनों ने सिक्के उठाए, दौड़ना शुरू हुए, और, अगले आधे घंटे में पांडाल के अन्दर थे.

ज्यादा देर भी नहीं हुई थी, अभी-अभी जादूगर शंकर ने लकड़ी की छड़ी को खड़ा कर के उसकी नोक पर एक लड़की को ऐसे सुलाया था मानों माँ ने लोरी गा के सुला दिया हो. सुबू और नानू को सांप सूंघ गया था. पूरे पांडाल को काटो तो खून नहीं. जनता को लगा कि इसके बदले में इतनी तालियाँ पीट दें कि हंथेलियों पर गुलाबी रंग की उबाल आ जाए. जादूगर ने मुस्कुराते हुए कहा, "दाद चाहूँगा", और उसके जवाब में तालियों की करतल ध्वनि नहीं, गड़-गड़ाहट से जादूगर को लाद दिया गया. बदले में जादूगर ने भी ऐलान किया, "अब मैं आप लोग को दिखाऊंगा, जादूगर शंकर का इन्द्र-जाल, जिसमें जादूगर शंकर खुद को तीन हिस्सों में बाँट लेता है". एक काले रंग का पर्दा लाया गया, चमड़ी के रंग की चुस्त पैजामियाँ पहने दो औरतें उसे जादूगर के सामने थामे तैनात हो गईं. परदे के पीछे से जादूगर के बुद-बुदाने की आवाजें तेज़ हो रहीं थी, बिलकुल वैसे ही जैसे पतीले से उबल कर गिरने से पहले दूध बुद-बुदाता है -

"नंग-धडंगे सच आया, ना बुस्शर्ट, ना घाघरा
लुंगी से कबूतर निकला, आबरा-का-डाबरा
झूठन कि हंसाई हुई, खुला भेद माज़रा
पलटन में बजी है ताली, सोलह-सोलह मातरा"

सुबू ने धीरे धीरे से नानू से पूछा, "क्या लगता है, तीन हिस्से होंगे ?"
"क्यूँ नहीं होंगे ! "
अपनी बेवकूफी पे सुबू शर्मिंदा हुआ, बात शर्मिंदा होने की थी भी, सौरी बोल कर उसने अपने चेहरे पर और अधिक भक्ति भाव ओढ़ने की कोशिश की. और टुकुर- टुकुर काले परदे को मुलुर-मुलुर निहारने लगा.
चमड़ी के रंग की चुस्त पैजामियाँ पहने दोनों औरतें मुस्कुराईं और उन्होंने पर्दा ऐसे छोड़ दिया जैसे अलिफ़-लैला में मालिकायें चहरे से हिजाब गिरा देती थीं.
हिज़ाब गिरा ....और सामने तीन जादूगर शंकर खड़े मुस्कुराते पाए गए !
जादू की जीत हुई, महेश मोटा हार गया, बहारिस्तान की जीत हुई, कॉमिक्स की दुनिया की जीत हुई, हर बच्चे के मासूम भरोसे की जीत हुई. जादूगर शंकर तीन तरह की मुस्कराहट से तीन जगह मुस्कुरा रहा था. पर्दा वापस लाया गया, वापस गिराया गया, जैसे कि कैसेट उलटा बजाई गई हो, और कैसेट के उल्टा बजते ही तीन जादूगर शंकर, वापिस एक जादूगर शंकर में इकठ्ठा हो चुके थे.

जादूगर शंकर ने जनता कि तालियों का अपनी मुस्कराहट से शुक्रिया अदा किया, और फिर से ऐलान किया, "अब आप में से कोई एक ...कोई एक ... यहाँ पर आएगा और मैं उसे गायब कर दूंगा. "
" हाँ तो .. कौन यहाँ आने वाला है ... गायब होने के लिए ?"
ये एक बहुत बड़ा सवाल था. पूरे पांडाल में कुल तीन लोग खड़े हुए, लेकिन अचानक संख्या तीन से एक हो गई, क्यूंकि दो को उनके नाते-दारों ने ये "पागल हो गया है क्या?" कह कर वापिस बिठा लिया. पहली लाइन में अभी तक खड़े इंसान को जादूगर ने बा-इज्ज़त ऊपर बुलाया, दोनों औरतें आयीं, पर्दा लगाया, बुद-बुदाहट हुई, पर्दा वापस गिराया ... जादूगर ने मंतर पढ़ा -
"नंग-धडंगे सच आया, ना बुस्शर्ट, ना घाघरा
लुंगी से कबूतर निकला, आबरा-का-डाबरा
झूठन कि हंसाई हुई, खुला भेद माज़रा
पलटन में बजी है ताली, सोलह-सोलह मातरा"

वो इंसान गायब किया जा चुका था.


CHAPTER FIVE - 'आइडिया, पैटर्न, नथुने और आखिरी सिक्के'

दिन भर कि जादू कि दुनिया में हिलोरें लेकर दोनों जब घर लौटे थे तो ऐसे भाव-विभोर थे कि सुहाग रात कि अगली सुबह आदमी और औरत. बोलते कुछ न थे, बस एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते और पता नहीं क्यूँ शर्माते भी जाते. तमाम देर यही उप-क्रम दोहराने के बाद नानू ने सुबू से कहा, "भाई मैं सोच रहा था कि अगर कल को जादूगर हमें गायब कर दे तो ..तो हम महेश मोटे के चुंगल से बच जाएँगे. साला जब हमें देख ही नहीं पाएगा तो नाक क्या ख़ाक घिसवाएगा ??.... क्या बोलता है ??"
सुबू कि हालत फिर ऐसी गई थी जैसे भगवान राम के आगे हनुमान जी हो, वो कहना चाहता था कि भगवन आप तो जो भी करेंगे वो सही ही होगा, लेकिन सुबू कुछ कह नहीं पाया. बस सोच ही रहा था कि नानू कि खोपड़ी में इतने आइडिये आते कैसे हैं.
"यार, देख... हमारे पास अभी भी पचास पैसे के तीन सिक्के और हैं. हमारे पास मतलब भगवान के पास. यानी कि हम तीन बार और जादू देख सकते हैं. और अगर तीनों में से एक भी बार उसने हमें आगे बुला लिया तो समझ कि जैक-पाट लग गया. इतना चांस तो ले ही सकते हैं. क्या बोलता है ?"
सुबू को मास्टर प्लान बहुत पसंद आया. तय किया गया कि दोनों मंदिर जाकर भगवान से बा-कायदा क्षमा मांगकर सिक्के लिए आएँगे और अपनी किस्मत आज़माएंगे. और अगर ऐसा हो गया, तो इसका मतलब ही यही है कि भगवान भी चाहता था कि उसको बीच में टांग अड़ाने कि जरुरत ही ना पड़े और काम भी हो जाए.
अगले दिन दोनों मंदिर गए और सिक्के लेकर जादूगर के पांडाल में पहुंचे.
दोनों आगे वाली सीट पर ठीक उसी जगह बैठे जहाँ पर पिछली बार आदमी को जादूगर ने ऊपर बुलाया था. जादूगर ने वही सारे जादू वापस से उसी महा-रथ और सफाई के साथ दिखाए. लेकिन दोनों को तो बस गायब होने वाले जादू का इंतज़ार था. जादूगर ने फिर से जनता से वही सवाल पूछा, इस बार फिर चार-पांच लोग ही खड़े हुए, लेकिन किस्मत वाला एक ही. नानू और सुबू का नंबर नहीं आया.
लेकिन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी, दो दिन और किस्मत आजमाने कि कोशिश की, लेकिन ढाक के तीन पात. कम्बखत हर बार कोई और ही बाज़ी मार ले जाता था.
दोनों जासूसी दिमाग लगा कर रोज़ इस बात का पैटर्न समझने कि कोशिश करते थे कि जादूगर आख़िरकार कहाँ बैठे आदमी को उठाता है, या उसकी फेवरिट पोजीशन क्या है. दोनों रोज़ जादू देखने के बाद घर जाकर मिट्टी पर पांडाल का कच्चा नक्शा बनाते थे और ये भिड़ाने कि कोशिश करते थे कि कल संभावित जगह कौन सी हो सकती है. वैसे तो उन्हें भी कुछ ख़ास समझ नहीं आ रहा था कि वो दोनों ये सब 'क्या' कर रहे हैं, पर ये ज़रूर समझ आ रहा था कि वो ये सब 'क्यूँ' कर रहे हैं.

कल फिर से स्कूल खुलने वाले थे, पचास-पचास के चारों सिक्के ख़तम हो चुके थे, गायब होने का मास्टर प्लान फुस्स हो गया. जिसका सीधा-सादा अर्थ ये था की महेश मोटा जीतने वाला है.
सुबू ने कहा, "अब?"
"अब मतलब?"
"अब मतलब कल क्या होगा .नाक तो पहले ही घिस चुकी है, खली नथुने बक़ाया हैं. अब कल पता नहीं क्या घिसवाएगा !!"
"कुछ नहीं होगा, चल जल्दी से जादूगर के कमरे में चल. उसके पैरों पर गिर जाएँगे .. देखते हैं कुछ न कुछ तो होगा ही .."
दोनों तम्बू के नीचे से सरक गए.
शंकर दोनों को देख कर हैरान था .. हालांकि कुछ ना कुछ तो समझ ही रहा था. क्यूंकि ये दोनों कम्बखत अपनी एड़ियों पर उचक कर, दाहिना हाँथ तान कर, चार इंच के छोरे, छह इंच बन्ने की मशक्क़त करते थे , ताकि जादूगर किसी तरह उन्हें ऊपर बुला ले. हाँथ इस तरह से दायें-बायें लहरते थे जैसे सरेंडर करने के लिए दुश्मन झंडा लहरा रहा हो. ऐसी मन-लुभावन मूर्तियाँ दिमाग में एक बार छप जाती हैं तो आसानी से मिटती नहीं हैं. शंकर पहचान गया था.

"तुम दोनों यहाँ कहाँ से आ गए ?"
शंकर आगे कुछ बोल पता उससे पहले ही दोनों उसके पैरों पर गिरकर दंडवत करते पाए गए...दोनों के चहरे ज़मीन की ओर थे इसलिए ये नहीं समझ आ रहा था की कौन सी आवाज़ किसकी थी, लेकिन आवाजें कुछ इस तरह थीं ..

"शंकर जी हमें प्लीज़ बचा लो .."
"नहीं तो महेश मोटा हमारा कचूमर बना देगा. उसने हमें पचास-पचास बार एक ज़वाब लिखने के लिए कहा है "
"लेकिन हम पचास-पचास बार जवाब लिखेंगे तो हमारी उँगलियों को लकवा मार जाएगा ..हमें प्लीज़ गायब कर दो जिससे की वो हमें देख ना पाए ..."

"हाँ हमें प्लीज़ गायब कर दो ... नहीं तो... बस हमें प्लीज़ गायब कर दो ."

भगवान् की जगह जादूगर ने ले ली थी. ज़रूरत में जो ज़रूर आए वही भगवान.

"हमारी चवन्नियां भी ख़तम हो गई हैं शंकर जी. प्लीज़ हमें गायब कर दो "

"छोकरों ... मैं तुम दोनों को गायब नहीं कर सकता हूँ "
जादूगर इतना निष्टुर-निर्दयी-निर्मम-निर्मोही कैसे हो सकता था!! एक पतली और दूसरी उससे तनिक और अधिक पतली आवाज़ इस कुठाराघात से ऐसे सुन्न हो गई थी जैसे की ज़ेब में से शब्द ख़तम हो गए हो ...दोनों ने ज़ेबें उलटी कर के, बाहर निकाल कर, झाड़ झाड़ कर भी देखा ... ना तो ज़ेब में कोई शब्द ही बचा था और ना ही कोई आइडिया ....

सुबू और नानू ने वही किया जो इस समय सबसे बेहतर तरीका हो सकता था. या प्रयास, सायास था या अनायास ..ये तो नहीं पता था लेकिन दोनों की आखों से अश्रु-धाराएं ऐसे बह रही थीं कि जादूगर के एक एक कतरे को आखिरी ज़र्रे तक अपने में बहा ले गयीं... जादूगर को जल्दी ही अपनी बात वापस लेनी ही पड़ी.

"अच्छा ठीक है मैं तुम दोनों को गायब कर दूंगा.लेकिन मेरी एक शर्त है ..तुम दोनों सिर्फ महेश मोटे के सामने गायब हो सकते हो. बाकी सब लोग तुम्हे देख सकते हैं .. मंज़ूर है ?"
मंज़ूर ना होने की गुंज़ाइश ही नहीं थी. दोनों ने झट-पट अपनी आँखें बंद कर ली.
जादूगर ने वापस आँखें खोलने को कहा.
"अब जाओ"
"पहले गायब तो करो..."
"तुम दोनों गायब हो चुके हो, महेश मोटा तुम दोनों को नहीं देख पाएगा, अब जाओ यहाँ से "
"लेकिन तुमने वो साबी तो कहा ही नहीं ...वो ...कुछ.. नंग धडंगे ... बुस्शर्ट और घाघरा ...?"
"मैंने कहा ना, तुम दोनों गायब हो चुके हो...."


CHAPTER SIX - 'आल्हा ऊदल बड़े लड़ईया, बैल बेच के लाए गधइया'

रात भर दोनों को नींद नहीं आई थी, ख़ुशी से. दोनों दिमाग में तरह-तरह के प्लान बना रहे थे . सुबू सोचता था की वो पीछे से जाकर महेश मोटे की पतलून पर चॉक से एक बड़ा सा गोला बना देगा ताकि वो बोर्ड पर लिखने के लिए पीछे घूमे तो पूरी क्लास उस पर हँसे.

अगले दिन दोनों सबसे पहले जाकर क्लास में बैठ गए थे. महेश मोटे का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से किया जा रहा था. सभी बच्चों को हैरानी हो रही थी की आज दोनों बड़ी तबियत से पिटने वाले हैं, फिर भी इतनी ढिठाई और बे-शर्मियत से हंस क्यूँ रहे हैं.
ख़ैर.. बे-शर्मों को बा-शर्म बना देने वाला महेश मोटा आ गया था. और उसकी आँखें दोनों को खोज रही थी.
सुबू और नानू को.
दोनों की हंसी थामे नहीं थमती थी. दोनों हंथेलियों से कस कर होंठ दबा कर हँसते थे. लेकिन महेश जी उन दोनों को खोज नहीं पा रहे थे.
"आज कहाँ हैं दोनों .. ढपोर-शंख?"

एक सूखे लड़के ने मोटी आवाज़ में ज़वाब दिया, "सर वो दोनों आज आगे बैठे हुए हैं ना ..."

"ओ हो , तो आज यहाँ बैठे हैं मेरे दोनों वीर बहादुर ...आल्हा और ऊदल.आइये अपनी-अपनी कॉपी दिखाइए, लिखा है ना पचास-पचास बार ?..."

दोनों मुह खोले, अवाक, निर्निमेष, अपलक, महेश जी को मुलुर-मुलुर निहार रहे थे. दोनों को काटो तो खून नहीं. जादूगर उनके साथ धोखा नहीं कर सकता था. या फिर उसका जादू महेश जी पर चला नहीं?
दोनों अपनी जगह से हिलने की स्थिति में नहीं थे. महेश जी ने उन्हें कष्ट देना उचित भी नहीं समझा. खुद अपने हांथों से दोनों का एक-एक कान पकड़ कर स्टेज पर मूर्तिवत स्थापित कर दिया. दोनों ख़ूब उड़ाए गए.

'ख़ूब' भी और 'बहुत-ख़ूब' भी.

एक कमज़ोर रग़ दब सी गई थी, उपाय जरुरी था. और चोट जब इस तरह की हो तो उसका उपाय सिर्फ बदला होता है. बदला गणित के मास्टर से अब क्या ही लिया जाता, या बाद में भले ही लिया जाता, अभी तो जादूगर से हिसाब-किताब बाक़ी था. दोनों ऐसे रोते थे जैसे ब्रज की गोपियाँ, और किसी भी उद्धव का कलेजा उन दोनों को देख कर डोल ही जाता. सुबू ने नानू से कहा,
"चल सीधे पांडाल"
"शंकर ?"
"हाँ .. हिसाब-किताब किए बिना सांस नहीं लिया जाएगा"
"क्या लगता है तुझे... होगा वो वहां... जिसके मन में चोर होता है वो पहले ही डर के भाग जाता है"
"मुझे नहीं मालूम, बस चल वहाँ "

बस्ता टाँगे हुए दोनों सीधे शंकर के पांडाल में पहुंचे. अब बदला लेने की बारी थी. लेकिन बदला कैसे लेना था ये दोनों में से किसी को पता नहीं था. दोनों एक-दूसरे का और फिर शंकर का चेहरा देख रहे थे.
चुप्पी तोड़ी गई ..

"तुने हमारे साथ ऐसा क्यूँ किया ..."
सवाल विद्रोह के साथ पूछा गया था ... और ख़तम कारुण्य के चरम पर हुआ. आए बदला लेने थे लेकिन हुआ कुछ और ही. सवाल ख़तम करते करते दोनों इतना रोए जितना की महेश मोटे के मारने पर भी नहीं रोए थे. अगर कोई शंकर से पूछता तो उसके अनुसार ये चीटिंग थी, दोनों बच्चे लड़ लेते तो ठीक था, कोई शक्ति-शाली इंसान आकर उसे पीट भी देता तो भी ठीक था...लेकिन ये.. ये तो सरासर चीटिंग थी, क्यूंकि इसका कोई भी उपाय, उत्तर, प्रत्युत्तर अथवा नुस्खा उसके पास नहीं था. अब अगर वो अपनी जादू की टोपी में हाँथ भी डालता तो कुछ निकल कर नहीं आता. शंकर अपना इंद्रजाल भी चलाता तो वो एक का तीन हो जाता, और तीन-गुनी पीर होती फिर. शंकर ने धीरज रक्खा, और पूछा, " क्या.. तुम लोग गायब नहीं हुए ?"
"सुबू चिल्लाया, "होते कैसे ... तुम ढोंगी हो"
"दुखी मत हो छोकरों. कुछ कम-ज्यादा हो गया होगा. ये जादू भी एकदम खाने के पकवान की तरह होता है मेरे दोस्त. और इसका मंतर नमक-धनिया-हल्दी के माफ़िक. एक-आधा चुटकी कम ज्यादा हुआ नहीं की सत्यनाश हो जाता है, एक-दो मिनट ज्यादा पकाया नहीं की सब गुड़-गोबर. इस बार मैं पुनरावृत्ति मंतर मारूंगा"
बहुत देर से चुप खड़ा नानू बोला, "उससे क्या होगा ?"
"पुनरावृत्ति मंतर से एक चीज़ बार-बार हो जाती है. दोहराई जा सकती है. तो.. बस तुम दोनों एक-एक बार अपनी कापी पर वो लिख डालो जो की मास्टर जी को दिखाना है .. आज पूरण-मासी है, मैं उस पर अपना जादुई पंख फिराऊंगा, और वो उसकी पचास बार पुनरावृत्ति कर देगा..."
सुबू ने नानू की तरफ देखा, आँखों ही आँखों में सवाल पूछा गया की जादूगर पर अब भरोसा करना है या नहीं.. सवाल का ज़वाब हाँ था.. मरता क्या न करता

दोनों ने एक-एक बार कॉपी पर ज़वाब लिख कर जादूगर को कॉपी थमा दी.
"अब ?"
"अब तुम दोनों कल सुबह आना, मैं रात को बारह बजे इन दोनों पर पंख फिराऊंगा. कल सुबह आकर अपनी कॉपी ले जाना"


CHAPTER SEVEN - 'पूरण-मासी, पुनरावृत्ति मंतर और जादुई पंख'

दोनों को रात भर नींद नहीं आई. आती भी तो कैसे? मन में तरह तरह के सवाल उठते थे. कल उनके हर-एक भरोसे का फाइनल एक्ज़ाम था. कल पिछड़ने का मतलब था की शायद उनकी काल्पनिक दुनिया झूठी है, नागराज, ध्रुव, तौसी, उसका अभी-अभी पैदा हुआ बेटा टनी, बरगद का जिन्न, और.... शायद अजूबा भी. और नानू ये एकदम नहीं चाहता था की दुनिया में कोई भी हरक़त उसके इस भरोसे को तोड़ सके. भरोसे के सच होने के लिए उसके पास सबूत भी थे. सब कुछ उसके दिमाग में वापिस से एक चक्कर घूम जाता था, मसलन, किताब में दबे पंख से बच्चा निकलना कोई मामूली बात नहीं थी. गया प्रसाद को जिन्न चढ़ जाना भी मामूली नहीं हो सकता था. उसकी चुम्बक भी अभी तक सटीक काम करती थी... दिमाग में यही सब गढ़ते-बुनते उसे नींद आ गई.

सुबह सुबह उसकी नींद सुबू की सिग्नलिंग से खुली .. वो आज फिर गा रहा था और बेतहाशा नाच रहा था...

"आज की रात सनम डेंस करेंगे ,
डेंस करेंगे, रोमेंस करेंगे.."

नानू ऐसे छिटक के खिड़की पर आया जैसे एक कंचा मरो तो दूसरा कंचा अपनी जगह से छिटक कर छेड़ में घुस जाता है,
"अबे क्या हुआ?"
"आज की रात सनम डेंस करेंगे ,
डेंस करेंगे, रोमेंस करेंगे.."

"अबे बोल न भाई ... हुआ क्या ..?"
"आज की रात सनम डेंस करेंगे ,
डेंस करेंगे, रोमेंस करेंगे.."

"अबे बोल नहीं तो मैं तेरा मुंह तोड़ दूंगा ... और जादूगर से कॉपी लेने नहीं जाना है क्या..."
"भाई मेरे रात भर ऐसी फटी हुई थी कि नींद ही नहीं आ रही थी. आज सुबह जल्दी से उठ कर सीधे शंकर के पांडाल में गया. डर लगता था कि कहीं वो हम दोनों से डर कर पांडाल उखाड़ कर भाग ना गया हो. लेकिन ये देख..."
सुबू ने शर्ट के बटन खोल कर अन्दर से दोनों कॉपियां निकाली, हवा में लहराई...तो उसकी मुस्कराहट देख कर नानू समझ गया की पूरण-मासी का पुनरावृत्ति मंतर काम कर गया है.
सुबू ने पूछा,
"भाई ... क्या लगता है .. उसने खुद तो नहीं लिख दिया होगा न रात भर में?"
नानू ने कहा, "पागल है क्या .. यही तो जादू होता है मेरे दोस्त... ये जादू भी एकदम खाने के पकवान की तरह होता है मेरे दोस्त. और इसका मंतर नमक-धनिया-हल्दी के माफ़िक. एक-आधा चुटकी कम ज्यादा हुआ नहीं की सत्यनाश हो जाता है, एक-दो मिनट ज्यादा पकाया नहीं की सब गुड़-गोबर."

दोनों ने जल्दी जल्दी अपना झोला टांगा, उसमे कॉपियां भरी और कुलांचे मारते हुए, छोटी साँसों को बड़ी साँसों से काटते हुए स्कूल के लिए रफूचक्कर हो गए.
जादू कि दुनिया जीत चुकी थी
महेश मोटा हार गया था
सुपर कमांडो ध्रुव जीत गया था
नागराज और टनी जीत गए थे ...

लड़क-पन जीत गया था ...