Wednesday, March 11, 2009

आपको हम ख़ुदा कर के ,
ज़रा से इंसान हो लें
बाकियों को जुदा कर के ,
आपसे रहमान हो लें
इश्क़ की महफ़िल लगा के ,
जन्नती फ़रमान हो लें
ऐरे-गैरों को दफा कर ,
अकेले मेहमान हो लें
क्या करें हम आरज़ू ,
क्यों बेवज़ह एहसान हो लें
क्या करेंगे जान का अब ,
दो घड़ी बेजान हो लें
सामने आ बैठिये तो
आंख मल हैरान हो लें
तू सनम बस मुस्कुरा हम
फुर्सत-ए- कुरबान हो लें

6 comments:

m.s. said...

kya baat hai !

Anonymous said...

bhai bahut badiyan vah vah

Vinod Rajagopal said...

Lovely! Glad to be here...!

बन जाइये अक्स-ओ-आईना मेरा
नफ्स-ए-मेहजूब-ओ-पशेमां हो लें

वर्तिका said...

waah! bahut khoob :)

Anonymous said...

thanks for writing this........
feels "my heart goes mmmmmmm......mmmmmmm" reading this again

vakrachakshu said...

@ ALL

behad shukria ji :)