तुझे याद है मां जब तुमने पहली बार कितनी मिन्नतों के बाद मुझे साग के दो कौर खिलाए थे . मैं घंटों तेरे चक्कर काटता रहता था और तेरे हांथों में निवाले वैसे के वैसे ...बिना चक्खे.. मुझे घूरते , चिढ़ाते रहते थे . और मैं उनकी शक्लें ऐसे देखा करता था गौया नीम की चटनी में परोसे गए हों . फ़िर भी तेरे कहने पर मैंने पहला कौरा जैसे तैसे निगला ..फ़िर दूसरा ..मैं कैसे अजीब से चेहरे बनाया करता था ना.
फ़िर तुमने पूछा कि कैसा है ..
मैंने कहा .."मीठा"
तुम हंसी थी ना ..
तुमने दुबारा पूछा..और मैंने दुबारा कहा कि हां ..मीठा ही तो.
......
आज काफ़ी सालों के बाद फ़िर किसी ने वैसा ही साग बना कर सामने रक्खा तो सचमुच तेरी याद आ गई .मैंने बड़े मन से साग का बड़ा सा निवाला खाया..
इश..
ये साग इतना तीता क्यूं है ..मैंने पूछा ...
उसने बोला ..
साग तीता ही होता है !!
.......
सच बोल ना मा...उस दिन भी तूने धोखे से अपनी उंगली ही चखाई थी ना...
Sunday, May 11, 2008
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2 comments:
ala jab bhi kuchh pyara, dil chhune types padhna hota hai...to ya to tum ya phir Varun bhaiya...(baaki sab ko kuchh aisi samasya ne gher rakha hai...jo unko lagta hai kewal unhi ko hai...:))...achchha tha be...jab bhi update karo batate raho...
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
:')
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