Thursday, October 23, 2008

सारी रात



रात,
स्वप्न की कुबड़ी लुगाई
नयन तले झाईं

रात,
नूर धुली कासी
चांद चढ़ा फ़ांसी

रात,
थकी पलकों की छीलन
अशेष नयनोन्मीलन

रात,
चंदा की मुहदिखाई
तारों की परजाई

रात,
करवट की दुकान
बिकाऊ पागल 'सचान'

रात,
गर्भवती दिमाग
प्रसव पीड़ा की जाग

रात,
सज़ा-ए-आफ़्ता गज़ल
खुदा ना खांसता ,बेदखल

रात,
झींगुर की गवाई
ढूंढी तकिया तले पाई

रात,
तेरे खयालों की चरसी
झपकी भर को तरसी

रात,
सब साली बातें
फ़िर भी ज़ाया रातें

5 comments:

शैलेश भारतवासी said...

सचान जी,

बहुत बढ़िया हैं रात पर आपकी यह क्षणिकाएँ। विशेषरूप से-

"सब साली बातें
फ़िर भी ज़ाया रातें"

Vaibhav said...

Insomnia brings out the best in you

love you

Praharsh Sharma said...

सुबह,
सुखी सशक्त सुगठित "सुन्दर-ए-सुजान"
सक्षम साकार सम्पूर्ण "शुभा-ए-सचान" ;) ;) :)

Anonymous said...

nice poem ,urdu to shubhanallah.............

Shantanu Gupta said...

Theese r very nice but long poems but it's really a great achievement of being an iit-ian and a very nice poet as well.......