Wednesday, January 7, 2009

"लपक बबुरिया लपक"

कभी एक दुपहरी मेरी है ,
कोई एक सहर चल तू ले ले .
कभी मैं वज़ीर कभी तू पैदल
बस शह पड़ने की देरी है .
लपक बबुरिया लपक आज ,
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी जीवन तेरा आल्हा है ,
कभी नाक-कटैया खेल हुआ .
कोई कंचा तू भी जीत गया,
कोई तेरी गोटी मेरी है .
लपक बबुरिया लपक आज ,
कन्नी कटने की देरी है ...

कोई महफ़िल तुझ पर लोट पड़ी ,
कोई आंगन टेढ़ा फ़िसल गया .
कभी डमरू लिए मदारी तुम ,
कभी चार गुलाटी तेरी है.
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी चौबे छब्बे बन बैठे ,
कभी दूबे बन कर लौटे हैं .
कोई एक पटाका फ़ुस्स हुआ ,
कोई चुटपुटिया रण-भेरी है .
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी घुंघरू बांधण चले रजा ,
कभी उनकी ही नथ उतरी है .
कोई नटवर ठग के लूट गया ,
कोई नंग धड़ंग अघोरी है .
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी सूप बजे तो ऐंवई है ,
कभी चलनी छेदन छींक गई .
कोई लौटा बनकर फ़न्ने खां ,
कोई करके चला दिलेरी है .
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

2 comments:

Unknown said...

this one is simpler ..
samajhne mein aasan...
maza aya padhkar...
ek sath itne shabdon ko ikathha karna is a real tough job...
keep up d gud work...

वर्तिका said...

gazab ki geetatmakta hai iss rachnaa mein.... aur nayapan to tumhari har rachnaa mein hotaa hi hai....

zubaan pe chipak gayi aapki ye rachnaa... simply loved it:)