वो अल्हड़ छोरी जब भी हंसकर
ऑंखें गोल नचाती है
वो गुणा भाग से चिढ़कर पगली
जब नाखून चबाती है
बालों के लट की मूछें जब
उसको अब तक भाती हैं
वो मुह बिचकाकर जामुन जब
नीले अधरों से खाती है
तब तब इस पगले दिल से मेरे
छत्तिस की ठन जाती है
नज़रें मेरी , ऑंखें मेरी
उसकी चाटुक बन जाती हैं .......
वो अल्हड़ छोरी जब भी
हल्दी का उबटन रचवाती है
बाँहों तक मेंहदी भरकर
चुहिया जैसी इठलाती है
वो आँचल के कोनों को जब
दांतों से सिलने लगती है
जब पोने पोने पैरों से
झरने से लड़ने लगती है
तब तब इस पगले दिल से मेरे
छत्तिस की ठन जाती है
नज़रें मेरी , ऑंखें मेरी
उसकी चाटुक बन जाती हैं .....
नज़रें मेरी , ऑंखें मेरी
उसकी चाटुक बन जाती हैं .....
वो अल्हड़ छोरी जब भी
बगिया में अमिया झरवाती है
वो खाए काम नाचे ज्यादा
क्या चोखा स्वांग रचाती है
वो रातों को छत पर लेटी
जब तारे गिनने लगती है
औ गिनती में गलती पे कुढ़
गिनने दोबारा लगती है
तब तब इस पगले दिल से मेरे
छत्तीस की ठन जाती है
नज़रें मेरी , ऑंखें मेरी
उसकी चाटुक बन जाती हैं .....
नज़रें मेरी , ऑंखें मेरी
उसकी चाटुक बन जाती हैं .....
वो बाबा की बातों से चिढ जब
मोटे आँसू रोंती है
अम्मा की गोदी में छिप
घंटों मनुहारें लेती है
जब दो पैसे के कम्पट से
खुश होती है , न रोंती है
जब काला खट्टा खा खा के
कुछ भी बोलो ,कर देती है
तब तब इस पगले दिल से
मेरे छत्तीस की ठन जाती है
नजरें मेरी , ऑंखें मेरी
उसकी चाटुक बन जाती हैं .....वो छोटी सी मटकी लेकर
जब कत्थक करती आती है
अन्जाने में पल्लू को
उस चोली से लटकाती है
जब लगें घूरने लौंडे तो
चट से गाली चिपकाती है
जब छड़ी नीम की थाम वो पगली
घंटों दौड़ लगाती है
तब तब इस पगले दिल से मेरे
छत्तिस की ठन जाती है
नज़रें मेरी आंखें मेरी
चाटुक उसकी बन जाती हैं
वो मौसम की पहली बारिश में
जब उत्पात मचाती है
छोटी छोटी कश्ती को वो
हर तलाब बहाती है
जब उसके होंठों पर बारिश की
खट्टी बूंद पिघलती है
फ़िर जीभ निकाले पगली वो
जब बरसातों को चखती है
तब तब इस पगले दिल से मेरे
छत्तिस की ठन जाती है
नज़रें मेरी आंखें मेरी
चाटुक उसकी बन जाती हैं
वो खड़ी सामने शीशे के
जब अपने पर इतराती है
पऊडर की पूरी डिबिया
उन गालों पर मलवाती है
फ़िर ज्यादा लाली से चिढ़कर
होंठों पर झीभ नचाती है
सपनों की प्यारी गुड़िया
हरछठ माई बन जाती है
तब तब इस पगले दिल से मेरे
छत्तिस की ठन जाती है
नज़रें मेरी आंखें मेरी
चाटुक उसकी बन जाती हैं
वो पड़ोस के छोरे को
जब छिप कर देखा करती है
और चोरी पकड़ी जाने पर
दिन भर शर्माया करती है
जब दुष्ट सहेली से बिनती कर
खत लिखवाया करती है
और बदले में उसको अपनी
दो हरी चूड़ियां देती है
तब तब इस पगले दिल से मेरे
छत्तिस की ठन जाती है
नज़रें मेरी आंखें मेरी
चाटुक उसकी बन जाती हैं
5 comments:
बहुत ख़ूब भई वाह
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
:)
shabdo mein tareef nahi kar sakta...u know what i mean :)
bahut hi behatreen,maja aa gaya padhkar..............
Bohut Badhiya !!!
It was like those sweet poems which one read in his school days. Simply a Classic..
sar naja aa gaya...aap ko shat shatnaman mera....
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