Thursday, March 13, 2008

"गोधरा"

रक्त की काषाय
लिप्सा
रुधिर मे अलमस्त
जिह्वा
अधर का
अभिषेक करती
लपलपाकर
गर्दनें गिरती
धड़ों से
छटपटाकर
मयानों की
जन्ग गलकर
छिटक आयी
झट पिघलकर
नोच डाले
नौ बरस के
शुष्क सीने
हवस के आखेट में
बचपने छीने...

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