Thursday, March 13, 2008

मेरा कुछ सामान ..

आज कुछ सामान लिए बैठा हूं
टटोलता हूं तो
मेरी कैफ़ियत है..
जो हर रात
चांद के कटोरे से चुराकर
इकट्ठा की है .
तेरी छुअन है ...
जिसका ज़ायका
मेरी उंगली के
अखिरी कोने से
अभी तक चिपका है .
तेरी अखिरी टूटी
पलक का काला रेशम है
जिसके धागे से
मैंने एक बावला सा
सपना बांध रखा है .
तेरी एक ताज़ा
खिलखिलाहट भी है
जिसकी खनक से
मेरी अखिरी गज़ल
अभी तक ज़िन्दा है.
तेरे रूठने का
एक मज़ेदार किस्सा भी
और साथ में
मेरे मनाने की
दिलचस्प कश्मकश भी है .
मेरा सबसे कीमती
पहला आंसू है
जो कि तेरे
कांधे से ढुलकने से पहले
बटोरा हुआ है .
एक खन्ज़र है
जिसे तेरी नज़र से
चुपचाप तोड़ा था
उसकी धार का निशान
अभी भी सुर्ख़ और ताज़ा है .
एक नमाज़ की दुआ भी है
जिसके पल्लू से
कबूल होने की अर्ज़ी
सिली हुई है .
कुछ एक फ़ुटकर
हांफ़ते हुए
लंगड़े से कांटे हैं
जो तेरे इन्तज़ार में
आलसी घड़ी से
चिढ़कर उखाड़े थे .
एक पनपता सा प्यार है...
एक तू है ..
और एक मैं भी .
आज कुछ सामान लिए बैठा हूं .
सामान कीमती सा है .

1 comment:

Ankur Sharma said...

Amazing dude..... although i am nothing in front of your poetry.... but i am something who can enjoy those beautiful words....
Hats Off to you....
"Kasam se maja aa gaya"