तुम आकर्षण का केन्द्र बिन्दु
मैं दूर परिधि के बाहर
तुम बसन्त पे फ़िद कली
मैं युग से शापित पतझर
तुम चपल चटक चंचल निर्झर
मैं उसका पिसता प्रस्तर
तुम सावन की पगली मेघा
मैं उसका भिक्षुक मरुधर
तुम फ़ागुन की अल्हड़ रंगत
मैं रंग अकेला काला
तुम नयनों की मादक साकी
मैं मय से खाली प्याला
तुम डाली की भोली कोयल
मैं एक अनसुना चातक
तुम भेजी परियों की क्रति
मैं जग में आया नाहक.........
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