Thursday, March 13, 2008

मौत


जीवन के भोले कपाल पे
रूखे सच का ,रक्त सना हस्ताक्षर
निश्चित मौत
मिटती, बनती, पुनः बिगड़ती
हर आशा की कथावस्तु की इतिश्री
अन्तिम मौत
आपाधापी के रेलों
औ पल छिन पल निर्बाध त्वरा
के क्रम पे यम की मुश्टिनाद
ये मौत
महाउदधि की हर तरन्ग
की चट्टानों से टक्कर
यूं कतरा कतरा छलती
औ चुप्पी पे हंसती,
पगली सी मौत
बूढ़ी नानी की थपकी
पर वो पूनम के लम्बे किस्से
और किस्सों के हर पन्ने की ये चिन्दी
बिखरी खोयी सी मौत
लैला मजनू के रब से भी पाक
ज़वां सच्चे इश्कों पे
जगवालों का और भी सच्चा
कड़ा तमाचा
ये तपाक सी मौत
उसी मौत के पन्जों में
इक पिन्जरबद्ध हसीं मैना
फिर भी इठलाता हंसता ;
यूं जीवट का परिचय
बनता सा जीवन
भेजा ही है जिसे गया
इस मृत्यु देश में मौत खोजने
फिर भी अट्टाहस करता
खुल के अपनी नियति पे
अल्हड़ जीवन
खूब पता है राग रहेगा
सदा अनसुना
सदा अनकहा
फिर भी दिल से तान छेड़ता
इरशादों के बिना अर्ज़ ...
ये जीवन

No comments: