Thursday, March 13, 2008

काश्मीर

कहीं किसी कोने में ,
वैधव्यतुषारव्रिता यथा विधुलेखा
तो कहीं दूब पर
लाल ओस की रेखा
कहीं किसी केसर क्यारी में
बेसुध तान्डव नर्तन
तो कहीं किसी के केशों का
वो नदी तटों पर कर्तन
मानव का दानव बनना
पैशाची रक़्त पिपासा
उन्मादों के पागलपन में
आयत फ़ुंकी धुंआ सा
बुज़ू ख़ूनी शराबों से
दरकती ईदगाहों पर
करोगे क्या बसाकर आशियाने....
कब्रगाहों पर ????

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