ये तुझे शरारत क्या सूझी
क्यों सुरमा आज नहीं डाला?
मय के सागर की सीमा को
कमली यों किलक मिटा डाला!!
ये अजब ढिठाई मय प्रदेश विच
अग्नि झरत झरानी है
औ जिन्हे फ़ांस के कत्ल किया
वो उसमे जलत जलानी हैं
उड रही कालिमा धूं धूं कर
घनघोर घटा घहरानी है
पल इस बैठक छिन उस करवट
नागिन फ़ुफ़कार डसानी है
जादू में ठगा अवाक मुग्ध
सन्सार तो आज नसानी है
तू अजब जहर मन्तर चोखा
क्या आज गयी बौरानी है?
लिख रहा शब्द सुलझा तुझ पर
बन रही तिलिस्म कहानी है
रति खडी ठगी उर्वशी मूक
सब अपना सिर खुजलानी हैं
हैं खडी सामने दर्पण के
सौ सौ मुख धर बिचकानी हैं
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