एक गांव में ताज़ा बचपन
अमराई पे जुटता था
बौराई चटकी कलियों पे
पागलपन सा लुटता था.
चिकने पीले ढेले लाकर
उनकी हाट जमाता था
पौआ भर गुड़ से भी ज्यादा
उनका मोल लगाता था.
जब नमक लगी रोटी मुट्ठी में
भरकर मजे से खाता था..
तो फसल चाटती हर टिड्डी को
जमकर डांट लगाता था.
अमिया की लंगड़ी गुठली से
सीटी मस्त बजाता था
जब टीले पे बैठा राजा बन
सबपर हुकुम चलाता था.
तो कभी सूर्य तो कभी पवन को
मुर्गा मस्त बनाता था.
कोइ उसके बुढ्ढे चूल्हे में
जब बांसा स्वप्न पकाता था
वो गोबर लिपे चबूतर पे
कोइ ताज़ा स्वांग रचाता था .
एक गांव मे ताज़ा बचपन....
अमराई पे जुटता था
बौराई चटकी कलियों पे
पागलपन सा लुटता था.
चिकने पीले ढेले लाकर
उनकी हाट जमाता था
पौआ भर गुड़ से भी ज्यादा
उनका मोल लगाता था.
जब नमक लगी रोटी मुट्ठी में
भरकर मजे से खाता था..
तो फसल चाटती हर टिड्डी को
जमकर डांट लगाता था.
अमिया की लंगड़ी गुठली से
सीटी मस्त बजाता था
जब टीले पे बैठा राजा बन
सबपर हुकुम चलाता था.
तो कभी सूर्य तो कभी पवन को
मुर्गा मस्त बनाता था.
कोइ उसके बुढ्ढे चूल्हे में
जब बांसा स्वप्न पकाता था
वो गोबर लिपे चबूतर पे
कोइ ताज़ा स्वांग रचाता था .
एक गांव मे ताज़ा बचपन....
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