Thursday, March 13, 2008

दीपावली

मैं हमेशा से मानता आया था कि दीपावली पूरे हिन्दुस्तान का त्यौहार है लेकिन आज जब गौर किया तो बहुतों के चेहरों पर इस तथ्य को नकारने वाले स्पष्ट हस्ताक्षर गढ़े मिले. फ़िर चाहे वो अस्सी घाट पे बैठे भिखारियों का समूह रहा हो , सिगरा चौराहे पर आज रात भी पान मसाले की लड़ियां बेचती पांच बरस की कातर निगाहें रहीं हों या फ़िर बनारस शहर के सबसे तिरस्क्रित गन्दे नाले के किनारे उससे भी ज्यादा तिरिस्क्रित अवस्था मे पड़े हुए उस शराबी का जीवित अथवा म्रित शरीर ही रहा हो. सबके लिए दीपावली के मायने अलग थे या फ़िर ये भी कह सकते हैं कि नहीं भी थे. इन्हीं सब के बीच सड़क पे कुन्टल भर पटाखों के चिथड़े पड़े हुए थे और उससे भी कहीं अधिक हर एक छण शून्य में लगातार स्वाहा हो रहा थे. भिखारन की आंखों में दीप जलना बाकी था , पांच बरस की मासूम आंखों में हर चवन्नी के साथ थोड़ा बहुत तो जलने भी लगा था पर शराबी शायद जलाना भी नहीं चाहता था क्योंकि उसे कोइ अधिक कारगर नुस्खा मिल चुका था. बहरहाल ....हिन्दुतान दीपावली मना रहा था...क्योंकि दीपावली पूरे हिन्दुस्तान का त्यौहार जो है.....

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