जिंदगी मैं पतंग तू इक डोर सी है
मेरे हर परवाज़ के उस छोर सी है
आ ना तगड़ी इस कदर इक ढील दे दे
एक मांझा चूम के फ़ाख्ता हो लूं .....
कैस सा उश्शाक़ मैं तू मंझी लैला
हर छिटकते पत्थरों के खेल सी है
आ ना तगड़ा अखिरी सा वार कर दे
दोज़खों से जन्नतों का नूर हो लूं ....
ज़िन्दगी मैं लहर तू चट्टान पगली
साहिलों के रोज़ जमते दर्प सी है
इक दफ़ा फ़िर आज चकनाचूर कर तो
रोज़ उठने के भरम से दूर हो लूं .....
बन्ज़रों की खलिश मैं तू बूंद उजली
बदलियों के पिघलते से मोम सी है
एक तगड़ी आखिरी बौछार कर तो
ज़र्रे ज़र्रे तक सिमट के भूल हो लूं ....
मेरे हर परवाज़ के उस छोर सी है
आ ना तगड़ी इस कदर इक ढील दे दे
एक मांझा चूम के फ़ाख्ता हो लूं .....
कैस सा उश्शाक़ मैं तू मंझी लैला
हर छिटकते पत्थरों के खेल सी है
आ ना तगड़ा अखिरी सा वार कर दे
दोज़खों से जन्नतों का नूर हो लूं ....
ज़िन्दगी मैं लहर तू चट्टान पगली
साहिलों के रोज़ जमते दर्प सी है
इक दफ़ा फ़िर आज चकनाचूर कर तो
रोज़ उठने के भरम से दूर हो लूं .....
बन्ज़रों की खलिश मैं तू बूंद उजली
बदलियों के पिघलते से मोम सी है
एक तगड़ी आखिरी बौछार कर तो
ज़र्रे ज़र्रे तक सिमट के भूल हो लूं ....
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